आसमान में बिजली क्यों चमकती है,और क्यों गिरती है? How the lightning happens

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दोस्तों क्या आपको मालूम है। आसमान में बिजली कैसे बनती है और क्यों गिरती है। अगर नहीं मालूम तो इस आर्टिकल के अंत तक बने रहेंगे। आपको सब कुछ मालूम हो जाएगा। दोस्तों तूफान का समय चल रहा है और बिजली कड़कना बिल्कुल आम है जिसे देखकर लोग अपने घरों के अंदर घुस जाते हैं। किसी की भी बाहर निकलने की हिम्मत नहीं पड़ती। पर क्या कभी आपने सोचा है कि आसमान में कड़कने वाली बिजली आखिर बनती कैसे हैं और इस जमीन पर क्यों गिरती है?
आज की इस खास आर्टिकल में मैं यानी आपको दोस्त असगर भाई आपको आसमान की खतरनाक बिजली से जुड़ी कुछ ऐसी बातें बताने वाला हूं जिसे सुनकर आप प्रकृति के इस अद्भुत कारनामे पर हैरान हो जाएंगे।
अकसर बारिश के दौरान काले बादलों के बीच में हमें प्रकाश की तेज चमक दिखाई देती है। वैसे तो बिजली अंधेरे में चमकती भी बड़ी सुंदर और रोमांचक दिखती है। लेकिन दोस्तों जब इस धरती पर पहुंचती है तो इसकी वजह से भयानक तबाही हो जाती है। दोस्तो बिजली का कड़कना एक प्राकृतिक घटना है लेकिन ये घटना इतनी ज्यादा परचण्ड हो जाती है की इस प्राकृतिक आपदा का नाम दिया जाता है तभी तो हर साल आसमान से गिरने वाला ये कहर 24,000 से ज्यादा लोगों को मौत के घाट उतार देता है और करोड़ों का नुकसान करता है। वह अलग,
आसमानी बिजली के दौरान विद्युत आवेश का तापमान सूर्य की सतह के तापमान से लगभग 4 से 5 गुना ज्यादा हो सकता है एक आसमानी बिजली में इतनी ताकत होती है कि इससे 3 महीने तक 100 वाट का बल्ब जलाया जा सकता है। इतना ही नहीं आसमानी बिजली में इतनी ताकत होती है कि एक बार में डेढ़ लाख के करीब रोटियां सेकी जा सकती है। आकाश से गिरने वाली बिजली लगभग 4 से 5 किलोमीटर लंबी होती है और इसकी फ्लैश एक या 2 इंच चौड़ी होती है, जिसमें 100000000 वोल्ड के साथ 10000 एंपियर का करंट दौड़ता है। वैसे तो आप लोगों ने अपनी जिंदगी में बहुत कम बाहर ही बिजली कड़कने की घटना को देखा होगा। लेकिन आप ही जान कर हैरान हो जाएंगे कि पूरे विश्व में प्रतिदिन औसतन 864000 बिजली चमकने की घटनाएं देखी जाती है जो की बहुत बड़ी संख्या है। लेकिन यहां सबसे बड़ा सवाल ये खड़ा होता है कि आखिर ये बिजली बनती कैसे है? जमीन पर क्यों गिरती है? यानी कि आसमान में ऐसा क्या हो जाता है जिससे आसमान में बिजली बन जाती है क्योंकि बिजली तो आप लोगों ने जमीन पर ही बनते हुए देखी होगी। जिस का आविष्कार धरती बनने के बहुत बहुत बाद में हुआ। लेकिन आसमान में बिजली चमकने की घटना पृथ्वी की शुरुआत से ही होती चली आ रही है तो फिर आसमान में क्या विज्ञान है जिसे समझने में हम इंसानों को इतने साल लग गए।
बिजली कैसे बनती है, और क्यों गिरती है?

दोस्तों सीधी सी बात है। आसमान में कोई जनरेटर तो लगा नहीं है जिसकी मदद से बिजली बन जाए। ऐसे में अगर हम प्राकृतिक तौर पर बताएं तो अपने बचपन में आपने स्कूलों में बात पढ़ी होगी कि जब सूरज की तेज रोशनी से समुद्र और नदियों का पानी भाप बनकर ऊपर जाता है तो जैसे जैसे वह ऊपर जाता है, वैसे वैसे उसका तापमान ठंडा हो जाता है और वो बादल में बदल जाता है। यानी कि जो ये बादल हम देख रहे हैं, यह कुछ और नहीं बल्कि भाप का पानी है जो आसमान में पहुंचकर ठंडा हो गया और एक ही जगह पर इकट्ठा हो गया। ऊपर जाकर बादल इतने ठंडे हो जाते हैं कि छोटे छोटे बर्फ के टुकड़ों में बदल जाते हैं और यह बर्फ के टुकड़े लगातार आपस में टकराते रहते हैं।
और दोस्तों इसी टकराव के कारण इनके बीच एक नेगेटिव चार्ज बनता है जो बादलों में नीचे की ओर होता है, लेकिन इसी में पॉजिटिव चार्ज भी बनता है जो हल्का होने के कारण बादलों में ऊपर की तरफ आ जाता है। अब ये नेगेटिव और पॉजिटिव चार्ज जब तक अलग होते हैं तब तक कुछ नहीं होता लेकिन जैसे ही ये दोनों आपस में कनेक्ट होते हैं, तो उनकी वजह से चिंगारी उत्पन्न होती है। अब जैसे ठंड में कंबल में अगर आप अपना हाथ रगड़ते है तो हल्की सी चिंगारी महसूस होती है या फिर तेज गर्माहट महसूस होती है? ठीक वैसे ही कुछ बादलों में बने नेगेटिव और पॉजिटिव चार्ज के मिलने से होता है। बस फर्क इतना है कि प्रोसेस काफी बड़े पैमाने पर हो जाता है जिसके तीन अलग-अलग प्रकार देखने को मिलते हैं।
- Intra Cloud Lightining
- Cloud to Cloud Lightining
- Cloud to Ground Lightining
Intra Cloud Lightining
अब अगर हम पहले प्रकार की बात करें तो दोस्तों इंटरा क्लाउड लाइटनिंग का मतलब होता है। एक ही बादल में बिजली का चमकना इसमें पॉजिटिव चार्ज ऊपर होता है और नेगेटिव चार्ज नीचे की ओर होता है। वो जब आपस में टकराते तो बिजली चमकती है, लेकिन इस प्रक्रिया में आवाज नहीं होती।
Cloud to Cloud Lightining
फिर आता क्लाउड टू क्लाउड लाइटनिंग यानी दो बादलों के बीच में बिजली का चमकना एक बादल के नेगेटिव चार्ज और दूसरे बादल के पॉजिटिव चार्ज एक दूसरे के संपर्क में जब आते है तो बिजली उत्पन्न होती है। इसमें जमीन पर खड़े व्यक्ति को बिजली दिख भी सकती है और नहीं भी दिख सकती है।
Cloud to Ground Lightining
लेकिन अंत में जो क्लाउड टू ग्राउंड लाइटनिंग होती है, इसे साधारण भाषा में बिजली का गिरना भी कहते हैं। इसमें होता ये है कि बादलों के अंदर नेगेटिव चार्ज जमीन के पॉजिटिव चार्ज की तरफ आकर्षित होकर लाइटनिंग बनाता है। जमीन पर अधिकतम छोटे पेड़ या खुले मैदान पर गिरती है। यही वजह है कि जब बिजली कड़कती है तो मैं खुले मैदान या फिर पेड़ों के नीचे जाने से मना किया जाता है। पर दोस्तों हर बार बिजली जमीन पर आकर गिरे ये बिल्कुल भी जरूरी नहीं। जो हवा में आकर ये खत्म भी हो सकती है। जमीन पर मिलने वाली बिजली 27000 डिग्री सेल्सियस पर गरम होती है। और ये जमीन पर गिरने वाली बिजली बहुत ही तेजी से आवाज करती है जिसे सुनकर इंसान कापने लगता है।
हालांकि इसमें लाइट की स्पीड साउंड स्पीड से कई गुना ज्यादा होती है। इसलिए हमें बिजली चमकते हुए पहले तो दिख जाती है लेकिन इसकी आवाज बाद में सुनाई देती है। ऐसे में अगर आपने बिजली चमकने और उसके गरजने की आवाज सुनने तक में पांच तक की गिनती गिनी तो समझ लीजिएगा कि वो आपसे 1 मील की दूरी पर है क्योंकि साउंड को 1.6 किलोमीटर का सफर तय करने में पूरे 5 सेकेंड का वक्त लगता है। वैसे एक इंटरेस्टिंग बात ये है कि हमें गिरती हुई नहीं बल्कि जमीन से उठकर वापस जाते हुए बिजली दिखाई देती है जिसकी स्पीड 32 करोड फिट प्रति सेकंड होती है और जो आवाज हमें सुनाई देती है उसकी स्पीड 1130 फिट प्रति सेकंड होती है और कई बार आपने बिजली तो देखी होगी, लेकिन आवाज नहीं सुनी होगी ऐसा इसलिए होता है क्योंकि आसमानी बिजली 100 मील दूर से भी देखी जा सकती है, जबकि आवाज केवल 12 मिनट तक ही सुनाई देती है।
तो दोस्तों उम्मीद है कि आसमान में बिजली क्यों बनती है, और क्यों गिरती है, और क्यों चमकती है? इससे जुड़ी बातें आप लोगों को समझ में आ गई होगी।
दोस्तों लास्ट तक आर्टिकल पढ़ने के लिए हमारे तरफ से आप लोगों को धन्यवाद है और फिर मिलते हैं अगले आर्टिकल में तब तक के लिए जय हिंद जय भारत।